दीपावली
" अला बला जाये, बलि का राज आये" एक लोकप्रिय मराठी कहावत है जिसका अर्थ है कि दिवाली पर बुरी शक्तियाँ चली जाएं और राजा बलि का शुभ राज आए। यह दिवाली के अगले दिन बलि प्रतिपदा के पर्व से जुड़ा है, जब माना जाता है कि राजा बलि पाताल लोक से पृथ्वी पर अपनी प्रजा से मिलने आते हैं। इस दिन बलि की पूजा और स्वागत किया जाता है।
"अला बला जाये, बलि का राज आये" एक प्रार्थना है जो राजा बलि की वापसी की कामना करती है, जो एक पौराणिक राजा थे जिन्हें दानशीलता और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता था। राजा बलि को भगवान विष्णु के वामन अवतार ने हरा दिया था, लेकिन अपनी भक्ति और त्याग के कारण उन्हें चिरंजीवी वरदान मिला। यह प्रार्थना राजा बलि के शासनकाल के दौरान समानता और समृद्धि को फिर से लाने की एक इच्छा को दर्शाती है।
प्रार्थना का अर्थ:
यह वाक्यांश लोगों की आशा और विश्वास को दर्शाता है कि राजा बलि, जो आज भी पाताल लोक में हैं, अपनी प्रजा के बीच लौटकर एक ऐसे शासन की स्थापना करेंगे जो न्याय, समानता और समृद्धि से भरा होगा, जैसा कि उनके शासनकाल में था।
प्रार्थना का संदर्भ:
यह प्रार्थना राजा बलि के शासनकाल की महानता को याद करती है और इसे आज के समय में वापस लाने की एक सामूहिक इच्छा को व्यक्त करती है।
राजा बलि (king Bali /Mahabali) की कहानी:
राजा बलि ने अपनी वीरता और दानशीलता से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी। वामन अवतार ने एक पग में पूरी पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए, राजा बलि ने अपना मस्तक दान कर दिया, जिससे वे पाताल लोक में चले गए।
वरदान:
राजा बलि की दानशीलता से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बनाया और वरदान दिया कि वह साल में एक बार पृथ्वी पर अपनी प्रजा से मिलने आएंगे।
ओणम से संबंध:
राजा बलि को चिरंजीवी वरदान प्राप्त है और लोक मान्यता के अनुसार, वे ओणम के अवसर पर पाताल लोक से धरती पर अपनी प्रजा से मिलने आते हैं।
बलि प्रतिपदा का पर्व:
इसी दिन को बलि प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है, जब राजा बलि पृथ्वी पर आते हैं। लोग उनकी पूजा करते हैं, दीप जलाते हैं, और मिठाई चढ़ाते हैं, यह मान्यता है कि इससे सुख-समृद्धि आती है।
महाराष्ट्र में विशेष परंपरा:
महाराष्ट्र में इस दिन "ईडा पीडा जाओ, बली राज येओ" (हमारी बहुत सी पीड़ाएं दुख-दर्द खत्म हो गए क्योंकि बली का राज आ गया) की प्रार्थना की जाती है, जो बुरी शक्तियों के जाने और राजा बलि के शुभ शासन के आने की इच्छा को व्यक्त करती है।
तिहार उत्सव और राजा बलि
तिहार उत्सव, जो नेपाल और भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है, और राजा बलि की कथा के बीच एक गहरा संबंध है। तिहार को दीपावली का ही एक रूप माना जाता है, जो पाँच दिनों तक चलता है और इसमें यमराज, विभिन्न पशुओं और राजा बलि का सम्मान किया जाता है।
हैं। तिहार के दौरान, यह माना जाता है कि राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, और देउसी-भैलो इसी वार्षिक यात्रा को मनाने का एक तरीका है।
देउसी-भैलो: तिहार के दौरान, देउसी गाने वाले समूह घर-घर जाकर राजा बलि की उदारता की प्रशंसा करते हैं और आशीर्वाद की कामना करते हैं। यह प्रथा राजा बलि के दान और त्याग का प्रतीक है, और लोग मानते हैं कि इससे उनके घरों में समृद्धि आती है।
